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क्यों दूं अग्नि परीक्षा मैं
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हर युग में क्यों दूं अग्नि परीक्षा मैं कौन हो तुम जो छीनते हो मेरी स्वच्छंदता नहीं सीता मैं जो राम बनो तुम मांगो मुझसे पवित्रता का साक्ष्य धरती फाड़ उसमें समा जाऊं मैं अर्धांगिनी हूं तुम्हारी नहीं पतीता मैं क्यों दूं अग्नि परीक्षा मैं नहीं अहिल्या मैं तुम छुओगे तो स्त्री बनू जबकि दोष इंद्र का नहीं था मेरा मात्र तुम्हारी छवि देख ही मैने किया समर्पण सर्वस्व अपना क्यों दूं अग्नि परीक्षा मैं नहीं मंदोदरी मैं कि पति कुमारगी हुआ पर मैं रही उसकी संगिनी सदा यदि भायी नहीं मैं मन को तो छोड़ स्वच्छंद तुम्हें कर दूंगी खुद को दूर सदा क्यों दूं अग्नि परीक्षा मैं नहीं रुकमणी किसी और से करते प्रेम तुम तो बाधा बनू तुम्हारे पथ की सर्वस्व दूंगी अपना तो सर्वस्व जाऊंगी तुम से भी राधा सी विरहणी बनकर छोड़ दूंगी स्वच्छंद तुम्हें भी क्यों दूं अग्नि परीक्षा में शिव की अर्धांगिनी हूं मैं बिना आज्ञा भवन में तुमको आने ना दूं हठ पर अड़ी मै प्राणों की आहुति भी दूंगी पर लो अग्निपरीक्षा तुम अधिकार तुम्हें ना दूंगी उम्र भर रहा निहारूगी पर मैं क्यों दो अग्नि परीक्षा मैं भूल गया तू पुर